Veer Ras

Veer Ras Saturday 27th of July 2024

Veer Ras वीर रस हिन्दी भाषा में रस का एक प्रकार है। जब किसी वाक्य या रचना आदि से वीरता जैसे स्थायी भाव की उत्पत्ति होती है तो वहां पर वीर रस होता है। or Veer Ras जब किसी वाक्य या रचना आदि से वीरता जैसे स्थायी भाव की उत्पत्ति होती है तो वहां पर वीर रस होता है। वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है और इस रस के अंतर्गत जब युद्ध या कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना जागृत होती है उसे ही वीर रस कहा जाता है . Veer Ras - वीर रस की परिभाषा उदाहरण और कविता

वीर रस की परिभाषा

वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है और इस रस के अंतर्गत जब युद्ध या कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना जागृत  होती है उसे ही वीर रस कहा जाता है।  इस रस में शत्रु पर विजय प्राप्त करने, कीर्ति प्राप्त करने आदि की भवन प्रकट होती है।

वीर रस का उदाहरण

साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धारि
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।
भूषन भनत नाद बिहद नगारन के
नदी नाद मद गैबरन के रलत हैं।।

मैं सत्य कहता हूँ सखे सुकुमार मत जानो मुझे,
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा मानो मुझे,
है और कि तो बात क्या गर्व मैं करता नहीं,
मामा तथा निज तात से भी युद्ध में डरता नहीं।  

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Veer Ras के अवयव

वीर रस के अवयव निम्न प्रकार हैं। 
स्थाई भाव- उत्साह।
आलंबन (विभाव)-अत्याचारी शत्रु।
उद्दीपन- शत्रु का अहंकार, रणवाद्य, यश की इच्छा आदि।
अनुभाव -गर्वपूर्ण उक्ति, प्रहार करना, रोमांच आदि।
संचारी भाव-आवेग, उग्रता, गर्व, औत्सुक्य, चपलता आदि।

वीर रस कविता

वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। 
हाथ में ध्वज रहे बाल दल सजा रहे,
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं 
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। 
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो 
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं 
वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो। .

वीर रस के बारे में और अधिक जाने

सामान्यत: रौद्र एवं वीर इन दोनों रसों की पहचान करने में ज्यादा कठिनाई होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि दोनों के उपादान बहुधा एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं। दोनों के आलम्बन शत्रु तथा उद्दीपन उनकी चेष्टाएँ ही हैं तथा दोनों के व्यभिचारियों तथा अनुभावों में भी सादृश्यता  हैं। कभी-कभी रौद्रता में वीरत्व तथा वीरता में रौद्रवत का आभास भी मिलता है। इन सब कारणों से कुछ विद्वान् रौद्र रस का अन्तर्भाव वीर में और कुछ वीर का अन्तर्भाव रौद्र में करने के अनुमोदक हो जाते हैं , परन्तु रौद्र रस के स्थायी भाव क्रोध तथा वीर रस के स्थायी भाव उत्साह में अन्तर पूर्णतया स्पष्ट है।

रस के भेद-
रस 9  प्रकार के होते हैं परन्तु वात्सल्य एवं भक्ति को भी रस माना गया हैं।

१- श्रंगार रस Shringar Ras 
२-  हास्य रस Hasya Ras
३-  वीर रस Veer Ras
४- करुण रस Karun Ras 
५-  शांत रस Shant Ras
६- अदभुत रस Adbhut Ras
७- भयानक रस Bhayanak Ras 
८- रौद्र रस Raudra Ras 
९- वीभत्स रस Vibhats Ras 
१०-  वात्सल्य रस Vatsalya Ras
११-  भक्ति रस Bhakti Ras