Vatsalya Ras

Vatsalya Ras वात्सल्य नामक स्थाई भाव विभावादि के संयोग से वात्सल्य रस के परिणत होता है। वात्सल्य रस का स्थायी भाव वात्सल्यता (अनुराग) होता है।

वात्सल्य रस का स्थायी भाव वात्सल्यता (अनुराग) होता है। इस रस में बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम,माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति प्रेम,गुरुओं का शिष्य के प्रति प्रेम आदि का भाव स्नेह कहलाता है यही स्नेह का भाव परिपुष्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है। वात्सल्य नामक स्थाई भाव की विभावादि के संयोग से वात्सल्य रस के परिणत  होता है। 

जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
 हलरावै, दुलरावै मल्हावै, जोइ सोइ, कछु गावै।

सन्देश देवकी सों कहिए,
हौं तो धाम तिहारे सुत कि कृपा करत ही रहियो। 
तुक तौ टेव जानि तिहि है हौ तऊ, मोहि कहि आवै
प्रात उठत मेरे लाल लडैतहि माखन रोटी भावै। 

बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति