adbhut ras जहां पर चकित कर देने के दृश्य के चित्रण से जो रस उत्पन्न होता है वहां अद्भुत रस उत्पन्न होता है. जहां पर चकित कर देने के दृश्य के चित्रण से जो रस उत्पन्न होता है वहां अद्भुत रस Adbhut ras उत्पन्न होता है.किसी असाधारण वस्तु या दृश्य को देखकर मन में विस्मय नमक स्थाई भाव ही विभावावादि से संयुक्त होकर अद्भुत रस में परिणत हो जाता है।
अदभुत रस का स्थायी भाव आश्चर्य होता है। जब ब्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होता है उसे ही अदभुत रस कहा जाता है। इसके अन्दर औंसू आना, रोमांच, गद्गद होना, काँपना, आँखे फाड़कर देखना आदि के भाव व्यक्त होता है।
किसी असाधारण वस्तु या दृश्य को देखकर मन में विस्मय नमक स्थाई भाव ही विभावावादि से संयुक्त होकर अद्भुत रस में परिणत हो जाता है।
अद्भुत रस ‘विस्मयस्य सम्यक्समृद्धिरद्भुत: सर्वेन्द्रियाणां ताटस्थ्यं या’-अर्थात् विस्मय की सम्यक समृद्धि या सम्पूर्ण इन्द्रियों की तटस्थता अदभुत रस है। कहने का तातपर्य यह है कि जब किसी रचना में विस्मय 'स्थायी भाव' इस प्रकार पूर्णतया प्रस्फुट हो कि सम्पूर्ण इन्द्रियाँ उससे अभिभावित होकर निश्चेष्ट बन जाएँ, तो वहाँ पर अद्भुत रस की निष्पत्ति होती है।
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अखिल भुवन चर- अचर सब
हरि मुख में लखि मातु।
चकित भई गद्गद् वचन
विकसित दृग पुलकातु॥
देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया,
क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया।
चित अलि कत भरमत रहत कहाँ नहीं बास।
विकसित कुसुमन मैं अहै काको सरस विकास।
देखरावा मातहि निज अदभुत रूप अखण्ड,
रोम रोम प्रति लगे कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड।