Rupak Alankar

Rupak Alankar Thursday 21st of November 2024

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रूपक अलंकार की परिभाषा

जहां रूप और गुण  की अत्यधिक समानता के कारण उपमेय में उपमान का आरोप कर अभेद स्थापित किया जाए वहां Rupak Alankar होता है। इसमें साधारण धर्म और वाचक शब्द नहीं होते हैं। उपमेय और उपमान के मध्य प्रायः योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। जैसे आए महंत, वसंत आदि वसंत में महंत का आरोप होने से यहां रूपक अलंकार है। 

Or

जहां उपमेय और उपमान एकरूप हो जाते हैं यानी उपमेय को उपमान के रूप में दिखाया जाता है अर्थात जब उपमेय में उपमान का आरोप किया जाता है वहां पर रूपक अलंकार होता। Rupak Alankar

रूपक अलंकार का उदाहरण

उदित उदयगिरि मंच पर, रघुबर बालपतंग।
बिकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन-भृंग।।

स्पष्टीकरण-

प्रस्तुत दोहे में उदयगिरि पर मंच का, रघुवर पर बाल पतंग का, संतों पर सरोज का एवं लोचनओं पर  भृगों  का अभेद आरोप होने से रूपक अलंकार है। 

 विषय-वारि मन-मीन भिन्न नहिं,
होत कबहुँ पल एक। 

स्पष्टीकरण-

इस काव्य पंकित में विषय पर वारि का और मन पर मीन का अभेद आरोप होने से यहां रूपक अलंकार है। 

सिर झुका तूने नियति की मान की यह बात। 
स्वयं ही मुर्झा गया तेरा हृदय-जलजात।।

स्पष्टीकरण-

उपयुक्त काव्य पंक्ति में हृदय जल जात में हृदय उपमेय पर जलजात (कमल) उपमान का अभेद आरोप किया गया है। अतः यहां पर रूपक अलंकार होगा। 

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Rupak Alankar के महत्वपूर्ण अन्य उदाहरण

१-मैया मैं तो चंद्र-खिलौना लैहों। 

२-मन-सागर, मनसा लहरि, बड़े-बहे अनेक। 

३-शशि-मुख पर घूंघट डाले
अंचल में दीप छिपाए। 

४-अपलक नभ नील नयन विशाल 

५-चरण-कमल बंदों हरिराइ। 

६-सब प्राणियों के मत्तमनोममयूर  
अहा नाच रहा

सम्पूर्ण अलंकार हिंदी ग्रामर


अन्य अलंकार-
 १-अनुप्रास अलंकार
२-यमक अलंकार
३-उपमा अलंकार
४-उत्प्रेक्षा अलंकार
५-अतिशयोक्ति अलंकार
६-अन्योक्ति अलंकार
७-श्लेष अलंकार
८-रूपक अलंका