Atishyokti Alankar Thursday 21st of November 2024
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काव्य में जहां किसी योग्य व्यक्ति की योग्यता अर्थात सुंदरता, वीरता और उदारता को बढ़ा चढ़ाकर लोक सीमाओं का उल्लंघन करते हुए वर्णन प्रस्तुत किया जाए तो वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
जहां किसी वस्तु पदार्थ अथवा कथन (उपमेय)का वर्णन लोक सीमा से बढ़कर प्रस्तुत किया जाए, वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
भूप सहस दस एकहि बारा।
लगे उठावन टरत न टारा। ।
धनुर्भंग के समय दस हज़ार राजा एक साथ ही उस धनुष (शिव-धनुष) को उठाने लगे, पर वह तनिक भी अपनी जगह से नहीं हिला। यहां लोक सीमा से अधिक बढ़ा चढ़ा कर वर्णन किया गया है, अतएव अतिशयोक्ति अलंकार होगा।
बालों को खोल कर मत चला करो दिन में
रास्ता भूल जाएगा सूरज !
आगे नदियां पड़ी अपार,
घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार,
तब तक चेतक था उस पार।
हनुमान की पूंछ में, लगन न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई गए, गए निशाचर भाग।
वह शर इधर गांडीव गुड़ से
भिन्न जैसे ही हुआ।
धड़ से जयद्रथ का इधर सिर
छिन वैसे ही हुआ।
अन्य अलंकार-
१-अनुप्रास अलंकार
२-यमक अलंकार
३-उपमा अलंकार
४-उत्प्रेक्षा अलंकार
५-अतिशयोक्ति अलंकार
६-अन्योक्ति अलंकार
७-श्लेष अलंकार
८-रूपक अलंका