Ras Hindi Grammar Thursday 21st of November 2024
Ras Hindi Grammar किसी वाक्य को सुनकर या पढ़ कर किसी दृश्य को देखकर जो अनुभूति होती है उसे रस कहते हैं। or रस का शाब्दिक अर्थ आनंद होता है। काब्य को पढ़ने और सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहा जाता है। किसी साहित्य या काब्य को पढ़कर जो आनंद प्राप्त होता है या आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहा जाता है। Exercise Of Ras In Hindi, Hindi Grammar Ras . Ras Hindi Grammar & रस के प्रकार, परिभाषा और उदाहरण
रस का शाब्दिक अर्थ है आनंद। काब्य को पढ़ने और सुनने में जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहा जाता है। पाठक या श्रोता के हृदय में स्थित स्थाई भाव ही विभावादि से संयुक्त हो कर रस रूप में परिणत हो जाता है। रस को काव्य की आत्मा / प्राण तत्व माना जाता है। Ras Hindi Grammar
रस के चार अंग है
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स्थाई भाव का मतलब प्रधान भाव। प्रधान भाव वही हो सकता है जो रस की अवस्था तक पहुंचता है। काव्य या नाटक में एक स्थाई भाव शुरू से आखिर तक होता है। स्थाई भाव की संख्या 9 मानी गई है। स्थाई भाव ही रस का आधार है। एक रस के मूल में एक स्थाई भाव रहता है। अतएव रसों की संख्या भी ९ है। जिन्हें नवरस भी कहा जाता है। मूलतः नवरस ही माने जाते हैं। बाद के आचार्यों ने दो और भावों (वात्सल्य व भगवत विषयक रति) को स्थाई भाव की मान्यता दी। इस प्रकार स्थाई भाव की संख्या 11 तक पहुंच जाती है और तदनुरूप रसों की संख्या भी 11 तक पहुंच जाती है। Ras Hindi Grammar
स्थाई भावों के उद् भोदक कारण को विभाव कहते हैं। विभाग दो प्रकार के होते हैं- १. आलंबन विभाव २. उद्दीपन विभाव।
आलम्बन विभाव -जिसका आलम्बन या सहारा पाकर स्थायी भाव जगते है आलम्बन विभाव कहलाता है। जैसे नायक- नायिका। आलम्बन विभाव के दो पछ होते हैं-आश्रयालंबन व विसयालम्बन। जिसके मन में भाव जगे वह आश्रयालंबन व जिसके प्रति या जिसके कारणं भाव जगे वह विसयालम्बन कहलाता है। Ras Hindi Grammar
उदाहरण-
यदि राम के मन में सीता के प्रति रति का भाव जगता है तो राम आश्रय होंगे और सीता विषय।
उद्दीपन विभाव- जिन वस्तुओं या परिस्थितियों को देखकर स्थाई भाव उद्दीप्त होने लगता है उद्दीपन विभाव कहलाता है। जैसे- चांदनी, कोकिल कूजन, एकांत स्थल, रमणीक उद्यान, नायक या नायिका की शारीरिक चेस्टाऐं आदि। Ras Hindi Grammar
मनोगत भाव को व्यक्त करने वाले शरीर- विकार अनुभाव कहलाते हैं। अनुभावों की संख्या 8 मानी गई है। १-स्तंभ २-स्वेद ३-रोमांच ४-स्वर भंग ५- कम्प ६- विवर्णता ७- अश्रु ८-प्रलय Ras Hindi Grammar
मन में संचरण करने वाले (आने- जाने वाले ) भावों को संचारी या व्यभिचारी भाव कहते हैं। संचारी भावों की कुल संख्या 33 मानी गई है। निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, मद, श्रम, आलस्य, देन्य, चिंता, मोह, स्मृति, घृति, ब्रीडा, चपलता, हर्ष, आवेग, जड़ता, गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अमर्ष, अविहित्था, उग्रता, मति, व्याधि, उन्माद, मरण, वितर्क Ras Hindi Grammar
रसों की संख्या 9 है।
वास्तव में रस नौ ही प्रकार के होते हैं परन्तु वात्सल्य एवं भक्ति को भी रस माना गया हैं इसलिए रसों की संख्या ११ हो जाती है। Ras Hindi Grammar
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रस | स्थायी भाव | उदाहरण |
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१- श्रृंगार रस | रति/प्रेम | 1- संयोग शृंगार : बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय। (संभोग श्रृंगार): सौंह करे, भौंहनि हँसै, दैन कहै, नटि जाय। 2 वियोग श्रृंगार : निसिदिन बरसत नयन हमारे (विप्रलंभ श्रृंगार): सदा रहित पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम सिधारे।। |
२- हास्य रस | हास | तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप, साज मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप। घंटा भर आलाप, राग में मारा गोता, धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता। |
३-करूण रस | शोक | सोक बिकल सब रोवहिं रानी। रूपु सीलु बलु तेजु बखानी।। करहिं विलाप अनेक प्रकारा।। परिहिं भूमि तल बारहिं बारा।। |
४- रौद्र रस | क्रोध | श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे। |
५- वीर रस | उत्साह | वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। |
६-भयानक रस | भय | उधर गरजती सिंधु लहरियाँ कुटिल काल के जालों सी। चली आ रहीं फेन उगलती फन फैलाये व्यालों-सी।। |
७-बीभत्स रस | जुगुप्सा/घृणा | सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत। खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनंद उर धारत।। गीध जांघि को खोदि-खोदि कै मांस उपारत। स्वान आंगुरिन काटि-काटि कै खात विदारत।। (भारतेन्दु) |
८- अदभुत रस | विस्मय/आश्चर्य | आखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लखि मातु। चकित भई गद्गद् वचन, विकसित दृग पुलकातु।। |
९- शान्त रस | शम/निर्वेद (वैराग्य/वीतराग) | मन रे तन कागद का पुतला। लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना।। |
१०- वत्सल रस | वात्सल्य रति | किलकत कान्ह घुटरुवन आवत। मनिमय कनक नंद के आंगन बिम्ब पकरिवे घावत।। |
११- भक्ति रस | भगवद विषयक रति/अनुराग | राम जपु, राम जपु, राम जपु बावरे। घोर भव नीर-निधि, नाम निज नाव रे।। |