Hindi Sahitya Ka Itihas

Hindi Sahitya Ka Itihas Tuesday 10th of December 2024

Hindi Sahitya Ka Itihas से तात्पर्य : - आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार प्रत्येक देश का Sahitya वहां की जनता की चितवृत्तियों का संचित प्रतिबिंब होता है। तब यह निश्चित है कि जनता की चितवृत्तियों में परिवर्तन के साथ साथ Sahitya के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अंत तक इन्ही चितवृत्तियों की परंपरा को रखते हुए साहित्य की परंपरा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही Hindi Sahitya Ka Itihas कहलाता है। किसी भी विषय के अध्ययन के लिए उसकी पृष्ठभूमि जानना बहुत आवश्यक होता है और उस पृष्ठभूमि को जानने की दृष्टि से ही जब हम हिंदी साहित्य का अध्ययन करते हैं तो हिंदी साहित्य के इतिहास का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।

आदिकाल हिंदी साहित्य का इतिहास

Aadikaal Hindi sahitya ka itihas-

650 ईस्वी -1350 ईस्वी

हिंदी साहित्य का इतिहास के विभिन्न कालों के नामांकरण का प्रथम श्रेय जॉर्ज ग्रियर्सन को जाता है। हिंदी साहित्य के इतिहास के आरंभिक काल के नामांकन का प्रश्न विवादास्पद है। इस काल को ग्रियर्सन ने "चारण काल" मिश्र बंधु ने "प्रारंभिक काल" महावीर प्रसाद द्विवेदी ने "बीज वपन काल" शुक्ल ने आदिकाल- "वीरगाथा काल" राहुल सांकृत्यायन ने सिद्ध "सामंत काल" रामकुमार वर्मा ने "संधिकाल व चारण काल" हजारी प्रसाद द्विवेदी ने "आदिकाल" की संज्ञा दी है। 

आदिकाल में तीन प्रमुख प्रवृतियां मिलती हैं- धार्मिकता, वीरगाथात्मकता व श्रृंगारिकता। 

आदि काल में दो शैलियां मिलती हैं डिंगल व पिंगल।  डिंगल शैली में कर्कस शब्दावलीओं का प्रयोग होता है जबकि पिंगल शैली में कर्ण प्रिय शब्दावली ओं का।  करकस शब्दावलियों के कारण डिंगल शैली अलोकप्रिय होती चली गई जबकि कर्ण प्रिय शब्दावलीओं के कारण पिंगल सैली लोकप्रिय होती चली गई और आगे चलकर इसका ब्रजभाषा में विगलन हो गया। 

आदिकालीन साहित्य के 3 सर्व प्रमुख रूप है-सिद्ध साहित्य, नाथ साहित्य और रासो साहित्य। 

हिंदी साहित्य के आदिकाल में आल्हा छंद बहुत प्रचलित था यह वीर रस का बड़ा ही लोकप्रिय छंद था। दोहा, रासा, तोमर, नाराच , पद्धति, अरिल्ल, आदि  छंदों का प्रयोग आदिकाल में मिलता है। 

पूर्व मध्यकाल हिंदी साहित्य

भक्ति काल -Bhakti kaal Hindi sahitya

1350 ईस्वी - 1650 ईस्वी 

भक्ति काल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण काल कहा जाता है। भक्ति काल के उदय के बारे में सबसे पहले जॉर्ज ग्रियर्सन ने मत व्यक्त किया वे इसे "ईसायत की दें" मानते हैं। 

ताराचंद के अनुसार- भक्तिकाल का उदय अरबों की देन है। रामचंद्र शुक्ल के मतानुसार देश में मुसलमानों का राज्य प्रतिष्ठित हो जाने पर हिंदू जनता के हृदय में गौरव गर्व और उत्साह के लिए वह अवकाश ना रह गया। उसके सामने ही उनके देव मंदिर गिराए जाते थे। देव मूर्तियां तोड़ी जाती थी और पूज्य पुरुषों का अपमान होता था और वे कुछ भी नहीं कर सकते थे। ऐसी दशा में अपनी वीरता के  गीत ना तो वे गा ही सकते थे और ना ही बिना लज्जित हुए सुन सकते थे। अपने पौरुष से हताश जाति के लिए भगवान की शरणागति में जाने के अलावा दूसरा मार्ग ही क्या था। भक्ति का जो सीता दक्षिण की ओर से धीरे-धीरे उत्तर भारत की ओर पहले से ही आ रहा था उसे राजनीतिक परिवर्तन के कारण शून्य पढ़ते हुए जनता के हिरदय  क्षेत्र में फैलने के लिए पूरा स्थान मिला।

भक्ति काल के प्रमुख कवि- 

सूरदास,संतशिरोमणिरविदास,ध्रुवदास,रसखान,व्यासजी,स्वामी,हरिदास,
मीराबाई,गदाधरभट्ट,हितहरिवंश,गोविन्दस्वामी,छीतस्वामी,चतुर्भुजदास,
कुंभनदास,परमानंद,कृष्णदास,श्रीभट्ट,सूरदास मदनमोहन,नंददास,
चैतन्य महाप्रभु आदि। 

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उत्तर मध्य काल हिंदी साहित्य का इतिहास

Reetikaal Hindi sahitya ka itihas-

1650 ईसवी- 1850 ईसवी

नामांकरण की दृष्टि से उत्तर-मध्यकाल हिंदी साहित्य के इतिहास में विवादास्पद है। इसे मिश्र बंधु ने -अलंकृत काल, तथा रामचंद्र शुक्ल ने -रीतिकाल, और विश्वनाथ प्रसाद ने -श्रृंगार काल कहा है Hindi sahitya ka itihas

रीतिकाल के उदय के संबंध में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का मत है- इसका कारण जनता की रुचि नहीं, आश्रय दाताओं की रूचि थी, जिसके लिए वीरता और अकर्मण्यता का जीवन बहुत कम रह गया था। रीतिकालीन कविता में लक्ष्मण ग्रंथ, नायिका भेद, श्रृंगारिकता  आदि की जो प्रवृतियां मिलती है उसकी परंपरा संस्कृत साहित्य से चली आ रही थी।Hindi sahitya ka itihas

हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार संस्कृत के प्राचीन साहित्य विशेषता रामायण और महाभारत से यदि भक्तिकाल के कवियों ने प्रेरणा ली तो रीतिकाल के कवियों ने उत्तर कालीन संस्कृत साहित्य से प्रेरणा व प्रभाव लिया। लक्ष्मण ग्रंथ, नायिका भेद, अलंकार और संचारी भावों के पूर्व निर्मित वर्गीकरण का आधार लेकर यह कवि बधी सधी बोली में बंधे सदे भाव की कवायद करने लगे।  Hindi sahitya ka itihas

रीतिकालीन कवि-

रीतिकालीन कवियों को तीन वर्गों में बांटा जाता है १-रीतिबद्ध कवि २-रीतिसिद्ध कवि ३- रीतिमुक्त कवि Hindi sahitya ka itihas

१-रीतिबद्ध कवि-

रीतिबद्ध कवियों ने अपने लक्षण ग्रंथों में प्रत्यक्ष रूप से रीति परंपरा का निर्वाह किया है। जैसे- केशवदास, चिंतामणि, मतिराम, सेनापति, देव, आदि।  आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने केशवदास को कठिन काव्य का प्रेत कहा है। 

२-रीतिसिद्ध-

रीतिसिद्ध कवियों की रचना की पृष्ठभूमि में अप्रत्यक्ष रूप से रीति परिपाटी काम कर रही होती है। उनकी रचनाओं को पढ़ने से साफ पता चलता है कि उन्होंने काव्यशास्त्र को पचा रखा है। बिहारी, रसनिधि आदि इस वर्ग में आते हैं। Hindi sahitya ka itihas

३- रीतिमुक्त कवि -

रीति परंपरा से मुक्त कवियों को रीतिमुक्त कवि कहा जाता है। घनानंद, आलम, ठाकुर, बोधा आदि इस वर्ग में आते हैं। Hindi sahitya ka itihas

आधुनिक काल हिंदी साहित्य

Aadhunik kaal hindi Sahitya-

1850 ईसवी- अब तक

आधुनिक काल रीतिकाल के बाद का काल है। आधुनिक काल को हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है। जिसमें पद्य के साथ-साथ गद्य, कहानी,समालोचना, नाटक व पत्रकारिता का भी विकास हुआ।हिंदी साहित्य का आधुनिक काल तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों से प्रभावित हुआ।इसी काल में राष्ट्रीय भावना का भी विकास हुआ। Hindi sahitya ka itihas

भारतेंदु युग-Bhartendu yug 

भारतेंदु युग का नामकरण हिंदी नवजागरण के अग्रदूत भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाम पर किया गया है। 

भारतेंदु युग की प्रवृत्तियां नवजागरण, सामाजिक, चेतना, भक्ति भावना, श्रृंगारिक्ता रीति निरूपण समस्या पूर्ति थी। Hindi sahitya ka itihas

हिंदी साहित्य के भारतेंदु युग में भारतेंदु को केंद्र में रखते हुए अनेक कृति साहित्यकारों का एक उज्जवल मंडल प्रस्तुत हुआ जिसे भारतेंदु मंडल के नाम से जाना गया। इसमें भारतेंदु के समान धर्मा रचनाकार थे। इस मंडल के रचनाकारों ने भारतेंद्र से प्रेरणा ग्रहण की और हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि का काम किया। Hindi sahitya ka itihas

भारतेंदु युग के प्रमुख रचनाकार-

भारतेंदु मंडल के प्रमुख रचनाकार भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रताप नारायण मिश्र ,बद्रीनारायण चौधरी (प्रेमघन), बालकृष्ण भट्ट, अंबिकादत्त व्यास, राधा चरण गोस्वामी, ठाकुर जगमोहन सिंह, लाला श्रीनिवास दास, सुधाकर द्विवेदी, राधा कृष्ण दास आदि थे। Hindi sahitya ka itihas

द्विवेदी युग-Dvivedee yug-

हिंदी साहित्य में दिवेदी युग बीसवीं सदी के पहले दो दशकों का युग है। दो दशकों के कालखंड में हिंदी कविता को श्रृंगारिकता से राष्ट्रीयता, जड़ता से प्रगति तथा रूढ़ि से स्वच्छंदता के द्वार पर ला खड़ा किया। द्विवेदी युग को जागरण सुधार काल भी कहा जाता है .द्विवेदी युग के पथ प्रदर्शक विचारक और सर्व स्वीकृत साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर इसका नाम द्विवेदी युग रखा गया है। 

द्विवेदी युग के कवि-

दिवेदी मंडल के कवियों में मैथिलीशरण गुप्त, हरिओम सियारामशरण गुप्त, नाथूराम शर्मा, महावीर प्रसाद द्विवेदी आते हैं। 

छायावाद युग -chhaayaavaad yug

हिंदी साहित्य के इतिहास में छायावाद युग के वास्तविक अर्थ को लेकर विद्वानों में विभिन्न मतभेद है। छायावाद का अर्थ मुकुटधर पांडे ने "रहस्यवाद, सुशील कुमार ने "अस्पष्टता" महावीर प्रसाद द्विवेदी ने "अन्योक्ति पद्धति" रामचंद्र शुक्ल ने  "शैली बैचित्र्य "नंददुलारे बाजपेई ने "आध्यात्मिक छाया का भान" डॉ नगेंद्र ने "स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह"बताया है। Hindi sahitya ka itihas

छायावाद के कवि चतुष्टय- प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी वर्मा। 

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