Chhand in hindi Thursday 21st of November 2024
Chhand in hindi जिस रचना में मात्राओं और वर्णों के विशेष व्यवस्था तथा संगीतात्मकता लय और गति की योजना रहती है उसे छंद कहते हैं। छंद हिंदी व्याकरण छंद की परिभाषा भेद उदाहरण सहित व्याख्या- Example of chhand in hindi grammar - छंद हिंदी व्याकरण. chhand in hindi pdf download, chhand in hindi trick, easy example of chhand in hindi, chhand in hindi for marriage, malini chhand in hindi, hindi mein chand, example of sortha chhand in hindi, chhand ke udaharan. हिंदी छंद pdf छंद शास्त्र pdf संस्कृत छंद pdf कवित्त छंद के उदाहरण छंद कविता वर्णिक छंद उदाहरण छंद के प्रकार और उदाहरण pdf रोला छंद उदाहरण
छंद शब्द संस्कृत के छिदि धातु से बना है छिदि का अर्थ है ढकना, आच्छादित करना। सर्वप्रथम छंद की चर्चा ऋग्वेद में आई है। छांदोग्य उपनिषद में कहा गया है कि देवताओं ने मृत्यु भय से अपने अर्थात अपनी कृतियों को, छंद में ढक लिया। शास्त्रीय कथन यह भी है कि कलाकार और कलाकृति को छंद अकाल मृत्यु से बचा लेता है। अतः कहा जा सकता है कि छंद वह सुंदर आवरण है जो कविता-कामिनी के शरीर को ढक कर उसके सौंदर्य में वृद्धि करता है।
जिन रचनाओं में वर्ण, मात्रा, यति, गति, तुक आदि पर बल दिया जाता है वे छंद कहलाते हैं।
अक्षरों की संख्या एवं क्रम मात्रा, गणना तथा यति- गति से संबंधित विशिश्ट नियमों से नियोजित पद रचना छंद कहलाती है।
छंद के लक्षण निम्नलिखित है -
१- छंद मानव हृदय की सौंदर्य भावना को जगाता है।
२- छंद गद्य की शुष्कता से मुक्त होता है।
३- छंदोबद्ध भावाभिव्यक्ति मे लय होने से उसमें गेयता आ जाती है।
४- छंदों में भावों की तरलता रहती है।
५- छंदों का प्रभाव हमारे हृदय और मन पर स्थाई पड़ता है।
प्राचीन काल से ही काव्य में छंद योजना एक कठिन साधना रही है। छंद रचना की एक विशेष प्रक्रिया सुनिश्चित की गई है। छंद की रचना प्रक्रिया को समझने के लिए उसके अंगों का ज्ञान आवश्यक है। यह अंग इस प्रकार है-
१-वर्ण २- मात्रा ३-यति ४-गति ५-तुक ६-लघु और गुरु ७-गण
१-वर्ण -वर्ण को ही अक्षर कहते हैं। यह छोटी सी ध्वनि है जिसे खंडित नहीं किया जा सकता।
वर्ण के दो भेद होते है।
(I)- लघु/ह्रस्व स्वर-जिनके उच्चारण में कम समय (एक मात्रा का समय) लगता है, उसे लघु/ह्रस्व स्वर कहते हैं जैसे-अ, इ, उ,ऋ।
(Ii)- दीर्घ स्वर- जिन के उच्चारण में लघु स्वर से अधिक समय (दो मात्रा का समय) लगता है उसे दीर्घ स्वर कहते हैं। जैसे- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
२- मात्रा- किसी स्वर के उच्चारण में जितना समय लगता है, उसे मात्रा कहते हैं।
३-यति- छंदों को पढ़ते समय कई स्थानों पर विराम लेना पड़ता है, उन्हीं विराम स्थलों को यति की संज्ञा दी गई है।
४-गति- छंदों को पढ़ते समय एक प्रकार के प्रवाह की अनुभति होती है जिसे गति कहा जाता है।
५-तुक- छंदों को पदान्त में जो अक्षरों की समानता पाई जाती हैं, उन्हें "तुक" कहते हैं। तुक दो प्रकार के होते हैं। १-तुकांत २-अतुकांत।
६-लघु और गुरु-
छंद शास्त्र में ह्रस्व को लघु और दीर्घ को गुरु कहते हैं।
७-गण-वर्णिक मे लघु - गुरु के क्रम को बनाए रखने के लिए गणों का प्रयोग होता है। तीन वर्णों के समूह को गण की संज्ञा दी गई है। गणों की संख्या 8 होती है जो हैं- यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण।
वर्ण और मात्रा के विचार से छंद के चार भेद हैं जो निम्नलिखित है।
(I)-मात्रिक छंद
(Ii)-वर्णिक छंद
(Iii)-उभय छंद
(Iv)-मुक्तक छंद
मात्राओं की गणना के आधार पर जिस छंद की रचना व्यवस्था होती है, उसे मात्रिक छंद कहते हैं।
इन छंदों में मात्राओं की समानता के नियम का पूरा पूरा ध्यान तो रखा जाता है किंतु वर्णों की समानता पर ध्यान नहीं रखा जाता। ऐसे छंद मात्रिक छंद कहलाते हैं।
केवल वर्ण गणना के आधार पर रचा गया छंद वर्णिक छंद कहलाता है। इन शब्दों में वर्णों की संख्या और नियम का ध्यान रखा जाता है।
मात्रिक और वर्णिक छंदों के तीन- तीन भेद हैं
१-सम
२-अर्द्ध सम
३- विषम
१-सम - जिस छंद के चारों चरणों में मात्राओं वर्णों की संख्या बराबर होती है उसे सम कहते हैं। जैसे- चौपाई।
२-अर्द्ध सम - जिस छंद के प्रथम और द्वितीय तथा तृतीय और चतुर्थ चरणों में मात्राओं अथवा वर्णों की संख्या बराबर होती है, उसे अर्द्ध सम कहते हैं। जैसे- दोहा,सोरठा, वरवै आदि।
३- विषम- जिस छंद में ४ से अधिक ६ चरण हों तथा प्रत्येक चरण में मात्राएं अथवा वर्णों की संख्या भिन्न भिन्न हो उसे विषम कहते हैं। जैसे छप्पय, कुंडलिया आदि।
गणों में वर्णों का बधा होना प्रमुख लक्षण होने के कारण इसे उभय छंद कहते हैं। इन छंदों में मात्रा और वर्ण दोनों की समानता बनी रहती है।
चरणों की अनियमित, आसमान, स्वच्छंद गति और भावनुकूल यति विधांन ही मुक्तक छंद है।
यह एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएं होती हैं। पहले चरण की तुक दूसरे चरण से तथा तीसरे चरण की तुक चौथे चरण से मिलती है। प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है।
जैसे-
I I IISI SI II SII
जय हनुमान ग्यान गुन सागर।
II ISI II SI ISII
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।
SI SI IIII IISS
राम दूत अतुलित बलधामा।
SII SI III II SS
अंजनि पुत्र पवन सुत नामा।
रोला एक सम मात्रिक छंद है, जिसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं तथा 11 और 13 पर यति होती है। प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु या दो लघु वर्ण होते हैं। दो दो चरणों में तुक आवश्यक है। जैसे-
II II SS III SI SSI III S
नित नव लीला ललित ठानि गोलोक अजिर में।
III SIS SI SI II SI III S
रमत राधिका संग रास रस रंग रुचिर में। ।
यह एक सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएं होती है। यति 16 और 12 पर होती है तथा अंत में लघु और गुरु का प्रयोग होता है। जैसे-
IIS IS S SIS S SI II S II IS
कहते हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गये।
II S IS S SI SS S IS SII IS
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गये पंकज नये।
दोहा छंद एक अर्द्ध सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 13-13 और सम चरणों (दूसरे और चौथे) में 11-11 मात्राएं होती हैं।
जैसे-
SS II SS IS SS SII SI
मेरी भव बाधा हरो, राधा नागर सोय।
S II S SS IS SI III II SI
जा तन की झाई परे, स्याम हरित दुति होय। ।
इसके दूसरे और चौथे चरण में के अंत में गुरु-लघु होता है। पहले और तीसरे चरण के आरंभ में जगण ( नहीं होता है।
सोरठा एक अर्द्ध सम मात्रिक छंद है। यह दोहे का उल्टा होता है। इसके विषम चरणों में 11-11 मात्राएं और सम चरणों में 13-13 मात्राएं होती हैं। सोरठा छंद में तुक प्रथम एवं तृतीय चरण में होती है। जैसे-
SI SI II SI IS III IIS III
कुंद इंदु सम देह, उमा रमन करुना अयन।
SI SI II SI III IS SII III
जाहि दीन पर नेह, करहु कृपा मर्दन मयन॥
यह एक अर्द्ध सम मात्रिक छंद। इसके विषम चरणों में 12-12 और सन चरणों में 7-7 मात्राएं होती हैं। यति प्रत्येक चरण के अंत में होती है।
जैसे-
SI SI II SII IS ISI
वाम अंग शिव शोभित, शिवा उदार।
III ISII S II III ISI
सरद सुवारिद में जनु, तड़ित बिहार॥
कुंडलिया एक विषम मात्रिक संयुक्त छंद जिसमें चार चरण होते हैं। इसमें एक दोहा और एक रोला होता है। दोहे का चौथा चरण रोला के प्रथम चरण में दोहराया जाता है तथा दोहा के प्रथम शब्द ही रोला के अंत में आता है। इस प्रकार कुंडलिया का प्रारंभ जिस शब्द से होता है उसी से इसका अंत भी होता है। जैसे -
SS IIS SI S IIS I SS SI
साईं अपने भ्रात को, कबहुं न दीजै त्रास।
पलक दूर नहिं कीजिये, सदा राखिये पास।
सदा राखिये पास, त्रास, कबहु नहिं दीजै।
त्रास दियौ लंकेश ताहि की गति सुन लीजै।
कह गिरिधर कविराय, राम सों मिलिगौ जाई।
पाय विभीशण राज, लंकपति बाजयो साईं।
SI ISII SI SIII SS SS
यह एक विषम मात्रिक छंद है। इसमें 6 चरण होते हैं- प्रत्येक चार चरण रोला के अंतिम दो चरण उल्लाला के। छप्पय में उल्लाला के सम विषम चरणों का यह योग 15+13= 28 मात्रओं वाला ही अधिक प्रचलित है। जैसे -
IS ISI ISI I IIS II S II S
जहाँ स्वतंत्र विचार न बदले मन में मुख में।
जहाँ न बाधक बनें, सबल निबलों के सुख में।
सब को जहाँ समान निजोन्नति का अवसर हो।
शांतिदायिनी निशा हर्ष सूचक वासर हो।
सब भाँति सुशासित हों जहाँ समता के सुखकर नियम।
II SI ISII S IS IIS S IIII III