Raudra Ras Thursday 21st of November 2024
Raudra Ras शत्रु की चेष्टाओं, गुरुजनों की निंदा, अपमान आदि से उत्पन्न क्रोध विभावादि से संयुक्त होकर रौद्र रस में परिणत होता है। रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध होता है अर्थात जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा किसी दुसरे पक्ष या दुसरे व्यक्ति का अपमान करने या अपने गुरुजन आदि कि निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहा जाता है।
रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध होता है अर्थात जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा किसी दुसरे पक्ष या दुसरे व्यक्ति का अपमान करने या अपने गुरुजन आदि कि निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहा जाता है। इसमें क्रोध के कारण मुख लाल हो जाना,शास्त्र चलाना,दाँत पिसना, भौहे चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं।
शत्रु अथवा अविनीत व्यक्ति की चेष्टाओं, गुरुजनों की निंदा, अपमान आदि से उत्पन्न क्रोध विभावादि से संयुक्त होकर रौद्र रस में परिणत होता है।
रौद्र रस काव्य का एक रस है जिसमें स्थायी भाव 'क्रोध' का भाव होता है। धार्मिक महत्व के आधार पर इसका वर्ण रक्त एवं देवता रुद्र है।
बोरौ,सबै रघुवंश कुठार की
धार में बारन बाजि. सरत्थहिं।
बान की वायु उड़ाव कें लच्छन
लच्छ करौं अरिहा. समरत्थहिं।
उस काल मरे क्रोध के तन काँपने उसका लगा
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।
सत्रुन के कुलकाल सुनी धनुभंग धुनी उठि बेगि सिधाये।
याद कियो पितु के बध कौ फरकै अधरा दृग रक्त बनाये।
आगे परे धनु-खण्ड बिलोकि प्रचंड भये भृगुटीन चढ़ाये।
देखत ओर श्रीरघुनायककौ भृगुनायक बन्दत हौं सिर नाये।
रस के भेद-
रस 9 प्रकार के होते हैं परन्तु वात्सल्य एवं भक्ति को भी रस माना गया हैं।
१- श्रंगार रस Shringar Ras
२- हास्य रस Hasya Ras
३- वीर रस Veer Ras
४- करुण रस Karun Ras
५- शांत रस Shant Ras
६- अदभुत रस Adbhut Ras
७- भयानक रस Bhayanak Ras
८- रौद्र रस Raudra Ras
९- वीभत्स रस Vibhats Ras
१०- वात्सल्य रस Vatsalya Ras
११- भक्ति रस Bhakti Ras