Utpreksha Alankar

Utpreksha Alankar Tuesday 10th of December 2024

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उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा

उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा

जहां पर उपमेय में उपमान की संभावना अथवा कल्पना कर ली गई हो, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसके बोधक शब्द है- मनो,मानो, मनु, मनहु, जानो,  जनु, जन्हु, ज्यों आदि। 

Utpreksha Alankar

जहां पर काव्य में उपमेय में उपमान की कल्पना की जाए वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। 

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण

मानौ माई घन घन अंतर दामिनि।
घन दामिनि दामिनी घन अंतर,
सोभित हरि-ब्रज भामिनि।।

स्पष्टीकरण -

उपयुक्त काव्य पंक्तियों में रासलीला का सुंदर दृश्य दिखाया गया है। रास  के समय पर गोपी को लगता था कि कृष्ण उसके पास नृत्य कर रहे हैं। गोरी गोपियां और श्याम वर्ण कृष्ण मंडला कर  नाचते हुए ऐसे लगते हैं मानव बादल और बिजली, बिजली और बादल साथ-साथ शोभा यान हो रहे हो। यहां गोपीकाओं  में बिजली की, और कृष्ण में बादल की संभावना की गई है। अतः यहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होगा। 

सोहत ओढ़े पीत पट,
स्याम सलोने गात। 
मनहुं नीलमनि सैल पर,
आतप परयौ प्रभात । । 

स्पष्टीकरण -

उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में श्री कृष्ण के सुंदर श्याम शरीर में नीलमणि पर्वत की ओर उनके शरीर पर शोभायमान  पीतांबर में प्रभात की धूप की मनोरम संभावना अथवा कल्पना की गई है। अतः यहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होगा। 

उत्प्रेक्षा अलंकार के अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण-

चमाचम चंचल नयन
विच घूँघट पट छीन। 
मानहु सुर सरिता विमल,
जल उछरत जुग मीन। 

उस काल मारे क्रोध के
तन कांपने उसका लगा
मानो हवा के जोर से
सोता हुआ सागर जगा। 

कहती हुई यो उत्तरा के, नेत्र जल से भर गए। 
हिम के कणों से पूर्ण मानो,हो गए पंकज नए। ।

मुख बाल रवि सम लाल होकर, ज्वाला सा  वोधित हुआ। 

सम्पूर्ण अलंकार हिंदी ग्रामर


अन्य अलंकार-
 १-अनुप्रास अलंकार
२-यमक अलंकार
३-उपमा अलंकार
४-उत्प्रेक्षा अलंकार
५-अतिशयोक्ति अलंकार
६-अन्योक्ति अलंकार
७-श्लेष अलंकार
८-रूपक अलंका

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