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Jain dharm
Jain dharm
jain dharm: The 6th century BC was the centenary of not only for India but for a profitable revolution for all the worlds. In fact this period was a period of strong philosophical ideas and truth research. In this period, Jainism was born in the valley of Central Ganga in India. Rishabhdev, the founder of Jain religion, is believed to be Jain Tirthankar first. There were a total of 24 pilgrims in Jainism.
Mahaveer swami
- जैन धर्म का संस्थापक ऋषभदेव को माना जाता है जो कि पहले जैन तीर्थकर भी थे।
- जैन तीर्थंकर ऋषभदेव तथा अरिष्टनेमि का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
- जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे जो काशी के इक्ष्वाकु वंश के राजा अश्वसेन के पुत्र थे।
- जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए- महावीर स्वामी जैन धर्म के 24 वे तीर्थकर थे। इनको जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक भी माना जाता है।
- जैन धर्म के दो संप्रदाय श्वेतांबर और दिगंबर हैं।
- इस धर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है।
- जैन धर्म में आत्मा की मान्यता है।
- खजुराहो में जैन मंदिरों का निर्माण चंदेल शासकों द्वारा किया गया था।
- जैन तीर्थंकरों की जीवनी भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में है।
- जैन साधुओं को तीर्थंकर कहा जाता था। महावीर स्वामी से पूर्व इस संप्रदाय के 23 तीर्थंकर हो चुके थे।
Jainism history in hindi
- महावीर स्वामी का जन्म वैशाली के निकट कुंडग्राम में 540 ईसापूर्व में हुआ था।
- इनके पिता का नाम सिद्धार्थ तथा माता का नाम त्रिशला था।
- महावीर स्वामी का विवाह यशोदा नामक राजकुमारी से हुआ था। इनके पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था।
- महावीर स्वामी सत्य की खोज के लिए 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर सन्यासी हो गए थे।
- इन्होंने 12 वर्ष की गहन तपस्या के पश्चात जम्मियग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के तट पर एक वृक्ष के नीचे सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति हुई।
- ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात महावीर स्वामी ने कौशल, मगध, मिथिला ,चंपा आदि राज्यों में भ्रमण कर अपने धर्म का 30 वर्षों तक प्रचार किया।
- महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर हुए।
- महावीर स्वामी ने अपना उपदेश प्राकृति (अर्धमागधी) भाषा में दिया।
- महावीर स्वामी के प्रथम अनुयाई उनके दामाद जामिल बने।
- प्रथम जैन भिक्षुणी नरेश दधिवाहन की पुत्री चंपा थी।
- महावीर पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करते थे।
- महावीर ने अपने शिष्यों को 11 गणधरों में विभाजित किया था।
जैन धर्म के 24 तीर्थंकर के नाम(Names of 24 Tirthankaras of Jainism)
Jain tirthankar
1-ऋषभदेव | 7-सुपार्श्वनाथ | 13-विमल | 19-मल्लि |
2-अजितनाथ | 8-चंद्रपर्भ | 14-अनंत | 20-सुब्रत |
3-संभवनाथ | 9-सुविधानाथ | 15-धर्म | 21-नेमिनाथ |
4-अभिनंदन स्वामी | 10-शीतल | 16-शांति | 22-अरिष्टनेमि |
5-सुमतिनाथ | 11-श्रेयांश | 17-कुन्थ | 23-पार्श्वनाथ |
6-पदमप्रभू | 12- वासुपूज्य | 18-अर | 24-महावीर स्वामी |
jainism history
जैन धर्म त्रिरत्न (Jain religion triratna) triratna in jainism
- सम्यक दर्शन-यथार्थ ज्ञान के प्रति श्रद्धा ही सम्यक दर्शन है। कुछ व्यक्तियों में यह स्वभाव तः विद्यमान रहता है तथा अन्य ऐसे विद्योपार्जन द्वारा सीख सकते हैं।
- सम्यक ज्ञान- सत्य व असत्य का अंतर ही सम्यक ज्ञान है।
- सम्यक चरित्र-अहितकर कार्यों का निषेध तथा हितकारी कार्यों का आचरण ही सम्यक चरित्र है।
जैन संगीतियां (Jain musicals)
- प्रथम जैन संगीति चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में लगभग 300 ईसापूर्व में पाटलिपुत्र में संपन्न हुई थी, इस संगीत में द्वादश अंगों का संपादन हुआ था। यह संगीत स्थूलभद्र एवं सम्भूति विजय नामक स्थविरों के नेतृत्व में आयोजित की गई थी।
- द्वितीय जैन संगीति गुजरात के वल्लभी नामक स्थान पर 513 ईस्वी में आयोजित की गई थी, इस संगीति की अध्यक्षता देवर्द्धि क्षमाश्रवण ने की थी। इसमें धर्म ग्रंथों का संकलन कर उन्हें लिपिबद्ध किया गया था।