Bharat Ka Itihas :- प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के 4 मुख्य स्त्रोत स्वीकार किए जाते हैं। पुरातात्विक स्त्रोत, धर्म ग्रंथ, ऐतिहासिक ग्रंथ, विदेशियों का विवरणप्राचीन भारत के अध्ययन हेतु पुरातात्विक स्त्रोत सबसे अधिक प्रमाणिक व विश्वसनीय है। और इस पोस्ट से हम प्राचीन भारत का इतिहास और आधुनिक भारत का इतिहास के बारे में अध्यन करेंगे। तो चलिए पेज स्क्रॉल करो और अपनी स्टडी जारी रखो।
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उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला यह उपमहाद्वीप भारतवर्ष के नाम से ज्ञात है। जिसे महाकाव्य तथा पुराणों में भारतवर्ष अर्थात् भरत का देश तथा यहां के निवासियों को भारती अर्थात् भारत की संतान कहा गया है। यूनानियों ने भारत को इंडिया तथा मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने हिन्द अथवा हिंदुस्तान के नाम से संबोधित किया है। Prachin Bharat Ka Itihas
प्राचीन भारतीय इतिहास ( Prachin Bharat Ka Itihas ) जानने के 4 मुख्य स्त्रोत स्वीकार किए जाते हैं। Prachin Bharat Ka Itihas
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प्राचीन भारत के अध्ययन हेतु पुरातात्विक स्त्रोत सबसे अधिक प्रमाणिक व विश्वसनीय है। पुरातात्विक स्त्रोत में अभिलेख, सिक्के, मूर्तियां, स्मारक एवं भवन, चित्रकला, अवशेष आदि जाने जाते हैं।Bharat ka itihas
अभिलेख- पुरातात्विक स्त्रोत के अंतर्गत अभिलेख सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत स्वीकार किए जाते हैं। प्राचीन भारत के अधिकतर अभिलेख पाषाण शिलाओं, स्तम्भों , ताम पत्रों, दीवारों तथा प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण है। सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख मध्य एशिया के बोगजकोई नामक स्थान से लगभग 1400 ईसापूर्व प्राप्त हुई है। इस अभिलेख में इंद्र, मित्र, वरुण और नासत्य आदि वैदिक देवताओं के नाम दिए गए हैं। भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक महान के प्राप्त होते हैं यह अभिलेख तीसरी शताब्दी ईसापूर्व के हैं। अशोक के अभिलेख ब्राह्मी, खरोष्ठी, यूनानी,आरमेइक लिपियों में पाए गए हैं।
प्रारंभिक अभिलेख (गुप्त काल से पूर्व) प्राकृत भाषा में हैं। सर्वप्रथम 1834 ई. में जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी लिपि में लिखे गए अशोक के अभिलेखों को पड़ा था।
सिक्के- आरंभिक सिक्कों पर चिन्ह पाए जाते हैं, परंतु बाद के सिक्के पर राजाओं और देवताओं के नाम तथा तिथियां भी उत्कीर्ण है। आहात सिक्के पंच मार्क सिक्के भारत के प्राचीनतम सिक्के हैं। यह 5 वीं सदी ईसापूर्व के हैं। आरंभिक सिकके अधिकांश चांदी के हैं यह पंच मार्क आहत सिक्के कहलाते थे। सातवाहनों ने शीशे तथा गुप्त शासकों ने सोने के सर्वाधिक सिक्के प्रचलित किए थे। सर्वप्रथम लेख वाले स्वर्ण सिक्के हिंद-यूनानी इंडो ग्रीक शासकों ने प्रचलित किया था।Bharat ka itihas
भारत का सर्व प्राचीन धर्म ग्रंथ वेद है। जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास को माना जाता है। वेद चार है- ऋग्वेद। यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद।
ऋग्वेद-
यजुर्वेद-
सस्वर पाठ के लिए मंत्रों तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है। इसके पाठ करता को अध्वर्यु कहते हैं। यह एक ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में लिखा गया है।
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सामवेद-
यह गायी जा सकने वाले ऋचाओं का संकलन है। इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।
अथर्ववेद-
अथर्वा ऋषि द्वारा रचित इस वेद में रोग निवारण, तंत्र मंत्र, जादू टोना, वशीकरण, आशीर्वाद, स्तुति, औषधि। अनुसंधान, विवाह, प्रेम, राजकर्म , मातृभूमि आदि विविध विषयों से संबंध मंत्र तथा सामान्य मनुष्य के विचारों, विश्वासों, अंधविश्वासों आदि का वर्णन है।
ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है तथा सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है।
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1-यूनानी रोमन-लेखक-
फाहियान- यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था। इसने अपने विवरण में मध्य प्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है। इसने मध्य प्रदेश की जनता को सुख एवं समृद्धि बताया है।
संयुगन- यह 518 ईस्वी में भारत आया। इसने अपने 3 वर्षों की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तियां एकत्रित की।
हेनसांग- यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था। इसने ६२९ ई. में चीन से भारत वर्ष के लिए प्रस्थान किया और लगभग 1 वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशा पहुंचा। भारत में 15 वर्षों तक ठहरकर 645 ई. में चीन लौट गया। वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौद्ध ग्रंथों को एकत्रित कर ले जाने के लिए आया था। इस का भ्रमण वृतांत सी- यू- की नाम से प्रसिद्ध है। जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है। इसने हर्ष कालीन समाज धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है। इसके अनुसार सिंध का राजा शूद्र था।
अलबरूनी- यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। अरबी में लिखी गई उसकी कृति किताब- उल- हिन्द या तहक़ीक़- ए- हिंद (भारत की खोज) आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। इसमें राजपूत कालीन समाज धर्म रीति रिवाज राजनीतिक आदि पर सुंदर प्रकाश डाला गया है।
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.मध्यकालीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोतों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-साहित्यिक स्रोत तथा पुरातात्विक स्रोत।
साहित्यिक स्रोत-
साहित्यिक स्रोतों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है --धार्मिक व धर्मनिरपेक्ष।
धार्मिक ग्रंथ- धार्मिक ग्रंथों की श्रेणी में हुए रचनाएं आती है जो किसी धर्म से संबंधित होती हैं मध्यकाल में सूरदास, तुलसीदास, रसखान की रचनाएं तथा मीराबाई, चैतन्य, विद्यापति ठाकुर के गेय पद एवं हमदानी,जख़ीरात उल मुल्क नामक तुर्की ग्रंथ आदि महत्वपूर्ण है। इनसे तत्कालीन धार्मिक, एवं सामाजिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है।
धर्मनिरपेक्ष- धर्मनिरपेक्ष विवरणों को निम्नलिखित तीन भागों में बांटा जा सकता है।
अ)- कल्पना प्रधान लोक साहित्य, जीवन चरित्र व अन्य ग्रंथ- विदेशी यात्रियों के विवरण तथा शाही फरमानों व पत्रों को छोड़कर सभी धर्मनिरपेक्ष साहित्य इसी शीर्षक में आ जाता है। कुछ प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार हैं:
फतहनामा, राजतरंगिणी, तुजुक ए बाबरी, हुमायूंनामा, तुजुक ए जहांगीरी, तारीख ए शेरशाही,अकबरनामा, बादशाहनामा, मुंतखब उल लुबाब, पद्मावत, पुरुष परीक्षा।
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ब)-विदेशी यात्रियों का विवरण
मध्यकाल में भारत में अरब, चीन, यूनान, पर्शिया, तुर्क, यूरोप आदि से अनेक यात्री आए जिनके संस्मरण तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। 13वीं शताब्दी में वेनिस से आए प्रसिद्ध यात्री मार्कोपोलो की विवरण से दक्षिण भारत की सामाजिक व आर्थिक स्थिति पर प्रकाश पडता है। मोहम्मद तुगलक के समय आय इब्न बतूता ने तत्कालीन युग की सामाजिक स्थिति पर प्रकाश डाला है।प्रशियन राजदूत अब्दुर्रज्जाक के विवरण विजयनगर साम्राज्य की सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक स्थिति पर प्रकाश डालते हैं। तुर्की यात्री अली रैस ने १५५३ ईस्वी से 1556 ईसवी तक भारत की स्थिति का विवरण लिखा। बरनी ने मुगल कालीन सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति प्रकार पर प्रकाश डाला तो जहांगीर के काल में आए सर टामस रो, विलियम हॉकिंस, डिलेट एवं पेल नामक यूरोपीय यात्रियों ने तत्कालीन आर्थिक स्थिति पर महत्वपूर्ण विवरण लिखें हैं।
शाही फरमान व पत्र- मध्यकालीन सुल्तानों व महाराजाओं के अपने अधिकारियों के नाम लिखे फरमान व् पत्र राजनीतिक स्थिति पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं।bharat ka itihas
पुरातात्विक स्रोत-
पुरातात्विक स्रोतों को हम निम्नलिखित भागों में विभक्त कर सकते हैं।
स्मारक- मध्यकालीन भवनों, मूर्तियों,एवं भग्नावशेषों से तत्कालीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। डेविड शैली में निर्मित कांचीपुरम का कैलाश मंदिर, तंजावुर में राजराज प्रथम द्वारा बनाया गया बृहदेश्वर मंदिर, चोल सम्राट द्वारा बनाए गए दक्षिण भारतीय मंदिरों की कला पर प्रकाश डालते हैं। मथुरा, उड़ीसा, आबू के मंदिरों से राजपूत कालीन स्थापत्य कला, मूर्तिकला व सांस्कृतिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है।
सिक्के व मुद्राएं- मुद्राएं किसी भी काल की आर्थिक स्थिति के विषय में जानकारी प्राप्त करने का महत्वपूर्ण साधन है। मध्यकालीन सिक्कों से तत्कालीन सुल्तान व शासकों के समय की आर्थिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है।
अभिलेख- मध्य काल के प्रारंभिक भाग विशेष रूप से दक्षिण भारत के इतिहास को जानने के लिए अभिलेखों का महत्वपूर्ण स्थान है। अभिलेख, शिलाओं, स्तंभ, धातु पत्रों, स्तूपों, मंदिरों की दीवारों पर प्राप्त हुए हैं। इन अभिलेखों के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक व राजनीतिक स्थिति का ज्ञान होता है।bharat ka itihas
आधुनिक भारतीय इतिहास लेखन के संदर्भ में ऐतिहासिक स्रोतों के रूप में कार्यालयीय अभिलेखों का सर्वाधिक महत्व है। कार्यालयीय अभिलेखों के अध्ययन से सभी महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर चरण बद्ध प्रकाश पड़ता है तथा इतिहास लेखन में पर्याप्त सहयोगी प्राप्त होता है। पुर्तगाली, डचों और फ्रांसीसी कंपनियों के अभिलेख 17वीं 18 वीं शताब्दी के इतिहास लेखन में उपयोगी है। इन अभिलेखों का महत्त्व विशेष रूप से आर्थिक इतिहास के लेखन में है।
फ़ारसी ऐतिहासिक ग्रंथों में भी आधुनिक भारतीय इतिहास के लेखन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस सन्दर्भ में गुलाम हुसैन द्वारा रचित "सियार-उल-मुतखरीन" का उल्लेख विशेष रुप से किया जा सकता है।
आधुनिक काल के बहुत से ऐसे ग्रंथ है जो संस्करण जीवन वृत्त और यात्रा वृतांत के रूप में लिखे गए हैं और ये ग्रन्थ18 वीं तथा 19वीं शताब्दी की महत्वपूर्ण जानकारियां प्रस्तुत करते हैं। उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में भारत में बहुत बड़ी संख्या में समाचार पत्रों पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ, जिनमें आधुनिक भारतीय इतिहास के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं।bharat ka itihas